इंद्रधनुष सतरंगी नभ में
पल भर पहले जो था काला
नभ कैसा नीला हो आया,
धुला-धुला सब स्वच्छ नहाया
प्रकृति का मेला हो आया !
इंद्रधनुष सतरंगी नभ में
सौंदर्य अपूर्व बिखराता,
दो तत्वों का मेल गगन में
स्वप्निल इक रचना रच जाता !
जहाँ-जहाँ अटकीं जल बूंदें
रवि कर से टकराकर चमकें,
जैसे नभ में टिमटिम तारे
पत्तों पर जलकण यूँ दमकें !
जहाँ-तहाँ कुछ नन्हें बादल
होकर निर्बल नभ में छितरे,
आयी थी जो सेना डट के
रिक्त हो गयी बरस बरस के !
पूरे तामझाम संग थी वह
काले घन ज्यों गज विशाल हो,
गर्जन-तर्जन, शंख, रणभेरी
चमकी विद्युत, तिलक भाल हो !
पंछी छोड़ आश्रय, चहकें
मेह थमा, निकले सब घर से
सूर्य छिपा था देख घटाएँ
चमक रहा पुनः चमचम नभ में !
जगह जगह बने चहबच्चे
फुद्कें पंछी छपकें बच्चे,
गहराई हरीतिमा भू की
शीतलतर पवन के झोंके !